Monday, May 01, 2006

मै एक कैक्टस !!

वर्षों से रेगिस्तान के
इस तपती धूप में,
एक बूंद पानी की आस मे,
खड़ा हुँ,
शायद कभी तो . . .

सहसा एक दिन,
दुर आकाश मे,
मुझे मेरे सपनो का,
आशाओं का
वो रंग दिखा,

क्या जमीन की तरह,
आसमान में भी,
ये मरीचिका तो नही ?
नही?
वो तो मेरे तरफ ही
आ रही थी।

उसकी बढती नजदिकियां,
कम कर रही थी,
मेरे दर्द को,
बढा रही थी,
मेरे प्यास को,

लेकिन,
वक्त की आंधी,
उड़ा ले गयी उसे,
दुर, बहुत दुर,
अब तो लगता है,
वो एक मरीचिका सी,

No comments: