अपने बच्चे की मौत का बदला लेने के लिये ट्रेन से टक्कर
Tuesday, May 30, 2006
Thursday, May 18, 2006
अमेरिका में उड़न तश्तरी
मै अपने कनाडा वाले उड़न तश्तरी जी के बारे में नही कह रहा हूँ। वे तो अपनी दुनिया में मस्त हैं। मै तो उन परग्रह वासियों के बारे में कह रहा हूँ जिनके लिये अमेरिका पसंदीदा टूरिस्ट स्पॉट बन गया है, और जब भी मुड होता है अपना उड़न तश्तरी लेकर अमेरिका पहुँच जाते हैं। यकीन नही होता। यहाँ देखिये, पिछले आठ सालों में लगभग ४० हजार बार वे अमेरिका की सैर कर चुके है।
वैसे कभी आपको दर्शन हुआ हो तो आप भी अपना अनुभव यहाँ दर्ज कर सकते है। एक बात माननी ही पड़ेगी, अमेरिका की चकाचौंध से दुसरे ग्रह वाले भी बच नही सकते।
मेरा एक सवाल है आप से, क्या आपको ऐसा नही लगता कि परग्रहवासी भारत भ्रमण पर इसलिये नही आते हैं, क्योंकि यह एक पिछड़ा देश है, और इसे क्षेत्र में आरक्षण मिलना चाहिये जिससे अन्तर-ग्रहिय स्तर पर भी इसे एक अलग पहचान मिले ?
आपके जवाब का इंतजार है।
वैसे कभी आपको दर्शन हुआ हो तो आप भी अपना अनुभव यहाँ दर्ज कर सकते है। एक बात माननी ही पड़ेगी, अमेरिका की चकाचौंध से दुसरे ग्रह वाले भी बच नही सकते।
मेरा एक सवाल है आप से, क्या आपको ऐसा नही लगता कि परग्रहवासी भारत भ्रमण पर इसलिये नही आते हैं, क्योंकि यह एक पिछड़ा देश है, और इसे क्षेत्र में आरक्षण मिलना चाहिये जिससे अन्तर-ग्रहिय स्तर पर भी इसे एक अलग पहचान मिले ?
आपके जवाब का इंतजार है।
Saturday, May 13, 2006
अब Outsourceing मातृत्व का
भारत अब मातृत्व के आउटसोर्शिगं का केन्द्र भी बनने जा रहा। दुनिया भर के निःसन्तान दम्पति जो कृत्रिमरुप से सन्तान चाहते है या कहें, कोख किराया पर चाहते है, उनके लिये भारत पहली पसन्द बन गई है।
इसका प्रमुख कारण हैः गरीबी और दुसरे देशो कि तुलना में कम कानूनी अर्चने।
ऐसा नही है कि हमारा समाज इस बात को सहजता से मान रहा है या मान लेगा, लेकिन अच्छी कमाई के कारण गरीब औरते बेहिचक यह काम करने को तैयार हो जाती हैं।
इसका एक उदाहरन गुजरात के आनन्द की सरोज है। गरीब सरोज तीन बच्चों की माँ है। लेकिन एक अमेरिकी दम्पति के संतान को अपने कोख में १० महिने पालने के लिये ५००० डॉलर में राजी हो गयी। ३२ साल की सरोज कहती हैः " रूपया तो एक कारण है, क्योंकि इससे मेरे परिवार की काफी जरुरतें पुरी होंगी। लेकिन एक निःसन्तान दम्पती की गोदभर कर मुझे भी खुशी मिलेगी।"
सिर्फ आनन्द में ही इस तरह की आठ और "सरोज" है। इन्डियान काउन्सिल आफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार भविष्य में भारत मे गर्भ-दान "व्यापार" का बाजार सलाना 600 करोड़ तक का हो सकता है।
इसका प्रमुख कारण हैः गरीबी और दुसरे देशो कि तुलना में कम कानूनी अर्चने।
ऐसा नही है कि हमारा समाज इस बात को सहजता से मान रहा है या मान लेगा, लेकिन अच्छी कमाई के कारण गरीब औरते बेहिचक यह काम करने को तैयार हो जाती हैं।
इसका एक उदाहरन गुजरात के आनन्द की सरोज है। गरीब सरोज तीन बच्चों की माँ है। लेकिन एक अमेरिकी दम्पति के संतान को अपने कोख में १० महिने पालने के लिये ५००० डॉलर में राजी हो गयी। ३२ साल की सरोज कहती हैः " रूपया तो एक कारण है, क्योंकि इससे मेरे परिवार की काफी जरुरतें पुरी होंगी। लेकिन एक निःसन्तान दम्पती की गोदभर कर मुझे भी खुशी मिलेगी।"
सिर्फ आनन्द में ही इस तरह की आठ और "सरोज" है। इन्डियान काउन्सिल आफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार भविष्य में भारत मे गर्भ-दान "व्यापार" का बाजार सलाना 600 करोड़ तक का हो सकता है।
Wednesday, May 10, 2006
ब्लॉगिस्तान: हिन्दी ब्लॉग निर्देशिका (Hindi Blog Directory)
ब्लॉगिस्तान में आप क्या कर सकते हैं :
- अपने ब्लॉग की RSS/XML Feed जोड़कर हिन्दी ब्लॉग निर्देशिका बनाने मे हमारी मदद कर सकते हैं।
- अपने प्रिय ब्लॉग की अन्तिम चार प्रविष्टियों का संक्षेप देख सकते हैं।
- Randomly चुने गये पाँच ब्लॉग की अन्तिम तीन प्रविष्टियों का संक्षेप देख सकते हैं।
- आपके ब्लॉग को लोकप्रिय बनाने में मददगार साबित होगी।
- और भी बहुत कुछ . . . ।
Tuesday, May 09, 2006
आज "২৫ বৈশাখ" है, यानी रवीन्द्रनाथ जी का जन्मदिन।
आज "২৫ বৈশাখ" है, यानी रवीन्द्रनाथ जी का जन्मदिन।
इसलिये मै अपनी लेख रवीन्द्रनाथ जी का नारी के प्रतिदृष्टिकोण की अगली कड़ी को आज के लिये विराम दे रहा हूँ।
इसलिये मै अपनी लेख रवीन्द्रनाथ जी का नारी के प्रतिदृष्टिकोण की अगली कड़ी को आज के लिये विराम दे रहा हूँ।
"তোমার জন্ম দিনে জানাই তোমাই শত শত প্রনাম"
"জন্ম দিনের সুভেচ্ছা"
"জন্ম দিনের সুভেচ্ছা"
Sunday, May 07, 2006
रवीन्द्रनाथ जी का नारी के प्रति दृष्टिकोण . . [भाग २]
19 वीं शताब्दी में जब महिलाओं को कितनी स्वाधीनता मिलनी चाहिये, इस बात पर चर्चा चल रही थी, तब भारत में नारी आनदोलन की प्रथम नेत्री, महाराष्ट्र की अग्निकन्या पन्डिता रमाबाई का भाषन सुनकर रवीन्द्रनाथ जी ने लिखा थाः
" रमाबाई ने कहा, महिलायें हर विषय में पुरुषों के समान हैं, सिर्फ मद्यपान को छोड़कर। आजकल 'पुरुषाश्रय' के विरोध में जो एक 'कोलाहल' उठा है, वह मुझे असंगत एवं अमंगलजनक लगता है। पहले महिलायें पुरुषों के 'अधीनताग्रहण' को ही अपना धर्म मानती थी। . . . एवं यह अधीनता ही उनके चरित्र को महानता प्रदान करती थी।. . . आजकल महिलाओं का एक वर्ग क्रमागत एक सुर में कह रही हैं, हम पुरुषों के आश्रय में हैं, हमारी हालत 'शोचनीय' है। इससे सिर्फ स्त्री-पुरुषों के बीच 'सम्बन्ध-बन्धन-हीनता प्राप्त' हो रही है।. . . इससे स्त्रीवर्ग की उन्नति तो बहुत दूर की बात है, उनलोगों को ही 'सम्पूर्ण क्षति' होगी। "
"स्त्री शिक्षा अत्यावश्यक है, इसे प्रामाणित करने के लिये ये कहना कि उनकी बुद्धि पुरुषों के समान है, की कोई जरुरत नही है। . . . महिलाओं में एक तरह की 'ग्रहणशक्ति', 'धारणाशक्ति' होती है, लेकिन 'सृजनशक्ति' का बल नही होता। . . . महिलाओं चाहे कितनी ही पढाई लिखाई कर ले, इस कार्यक्षेत्र में कभी भी वो पुरुषों की समानता नही कर सकतीं। इसका एक कारण है शारीरिक दुर्वलता। . . . स्त्रियों को संतान गर्भ में धारण एवं संतान पालन करना ही पड़ेगा। यह एसा कार्य है, जिसमे काफी समय उन्हे घर में व्यतीत करना पड़ता है।. . . 'बलसाध्य' काम करना प्रायः असम्भव है।"
नोटः रवीन्द्रनाथ जी के बारे में मै उतना ही जानता हुँ, जितना एक आम आदमी जानता है, और उनके प्रति श्रद्धा भी उतनी ही है। रवीन्द्रनाथ जी के उपर किसी भी तरह की टिप्पनी करने की योग्यता मुझमें नही है। यह पुरा लेख कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली बंगला दैनिक से "आनन्द बाजार पत्रिका" के 07-05-2006 के "रविवासरीय" अंक से उद्धृत है। मेरा उद्देश्य सिर्फ यह बात आपलोगो के साथ "शेयर" करना और इस विषय पर आपकी राय जानना है।
" रमाबाई ने कहा, महिलायें हर विषय में पुरुषों के समान हैं, सिर्फ मद्यपान को छोड़कर। आजकल 'पुरुषाश्रय' के विरोध में जो एक 'कोलाहल' उठा है, वह मुझे असंगत एवं अमंगलजनक लगता है। पहले महिलायें पुरुषों के 'अधीनताग्रहण' को ही अपना धर्म मानती थी। . . . एवं यह अधीनता ही उनके चरित्र को महानता प्रदान करती थी।. . . आजकल महिलाओं का एक वर्ग क्रमागत एक सुर में कह रही हैं, हम पुरुषों के आश्रय में हैं, हमारी हालत 'शोचनीय' है। इससे सिर्फ स्त्री-पुरुषों के बीच 'सम्बन्ध-बन्धन-हीनता प्राप्त' हो रही है।. . . इससे स्त्रीवर्ग की उन्नति तो बहुत दूर की बात है, उनलोगों को ही 'सम्पूर्ण क्षति' होगी। "
"स्त्री शिक्षा अत्यावश्यक है, इसे प्रामाणित करने के लिये ये कहना कि उनकी बुद्धि पुरुषों के समान है, की कोई जरुरत नही है। . . . महिलाओं में एक तरह की 'ग्रहणशक्ति', 'धारणाशक्ति' होती है, लेकिन 'सृजनशक्ति' का बल नही होता। . . . महिलाओं चाहे कितनी ही पढाई लिखाई कर ले, इस कार्यक्षेत्र में कभी भी वो पुरुषों की समानता नही कर सकतीं। इसका एक कारण है शारीरिक दुर्वलता। . . . स्त्रियों को संतान गर्भ में धारण एवं संतान पालन करना ही पड़ेगा। यह एसा कार्य है, जिसमे काफी समय उन्हे घर में व्यतीत करना पड़ता है।. . . 'बलसाध्य' काम करना प्रायः असम्भव है।"
नोटः रवीन्द्रनाथ जी के बारे में मै उतना ही जानता हुँ, जितना एक आम आदमी जानता है, और उनके प्रति श्रद्धा भी उतनी ही है। रवीन्द्रनाथ जी के उपर किसी भी तरह की टिप्पनी करने की योग्यता मुझमें नही है। यह पुरा लेख कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली बंगला दैनिक से "आनन्द बाजार पत्रिका" के 07-05-2006 के "रविवासरीय" अंक से उद्धृत है। मेरा उद्देश्य सिर्फ यह बात आपलोगो के साथ "शेयर" करना और इस विषय पर आपकी राय जानना है।
रवीन्द्रनाथ जी का नारी के प्रति दृष्टिकोण . . [भाग १]
"गीतांजली" के लिये नोबेल पुरस्कार पाने श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर जी का नारी के प्रति दृष्टिकोण किसी भी आम आदमी से अलग नही था। ये बात उनकी रचनाओं मे स्पष्टरूप से साबित होता है। उनके लिये नारी ..
सिर्फ विधाता की सृष्टि नही हो तुम नारी,
पुरुषों ने बनाया है तुम्हे सौन्दर्य संचारी।
[ शुधु बिधातार सृष्टि नोहो तुमी नारी,
पुरुष गोरेछे तोरे सौन्दर्यो सोंचारी। ]
और आदर्श नारी ..
आंगन में जो खड़ी रहे इंतजार में,
पहनकर ढाकाई साड़ी, मांग में सिंदुर ..
[ आंगिनाते जे आछे ओपेक्खा कोरे,
तार पोरोने ढाकाई साड़ी, कोपाले सिंदुर .. ]
स्रोतः आनन्द बाजार पत्रिका, रविबासरीय, ७ .५.०६
सिर्फ विधाता की सृष्टि नही हो तुम नारी,
पुरुषों ने बनाया है तुम्हे सौन्दर्य संचारी।
[ शुधु बिधातार सृष्टि नोहो तुमी नारी,
पुरुष गोरेछे तोरे सौन्दर्यो सोंचारी। ]
और आदर्श नारी ..
आंगन में जो खड़ी रहे इंतजार में,
पहनकर ढाकाई साड़ी, मांग में सिंदुर ..
[ आंगिनाते जे आछे ओपेक्खा कोरे,
तार पोरोने ढाकाई साड़ी, कोपाले सिंदुर .. ]
स्रोतः आनन्द बाजार पत्रिका, रविबासरीय, ७ .५.०६
Monday, May 01, 2006
मै एक कैक्टस !!
वर्षों से रेगिस्तान के
इस तपती धूप में,
एक बूंद पानी की आस मे,
खड़ा हुँ,
शायद कभी तो . . .
सहसा एक दिन,
दुर आकाश मे,
मुझे मेरे सपनो का,
आशाओं का
वो रंग दिखा,
क्या जमीन की तरह,
आसमान में भी,
ये मरीचिका तो नही ?
नही?
वो तो मेरे तरफ ही
आ रही थी।
उसकी बढती नजदिकियां,
कम कर रही थी,
मेरे दर्द को,
बढा रही थी,
मेरे प्यास को,
लेकिन,
वक्त की आंधी,
उड़ा ले गयी उसे,
दुर, बहुत दुर,
अब तो लगता है,
वो एक मरीचिका सी,
इस तपती धूप में,
एक बूंद पानी की आस मे,
खड़ा हुँ,
शायद कभी तो . . .
सहसा एक दिन,
दुर आकाश मे,
मुझे मेरे सपनो का,
आशाओं का
वो रंग दिखा,
क्या जमीन की तरह,
आसमान में भी,
ये मरीचिका तो नही ?
नही?
वो तो मेरे तरफ ही
आ रही थी।
उसकी बढती नजदिकियां,
कम कर रही थी,
मेरे दर्द को,
बढा रही थी,
मेरे प्यास को,
लेकिन,
वक्त की आंधी,
उड़ा ले गयी उसे,
दुर, बहुत दुर,
अब तो लगता है,
वो एक मरीचिका सी,
Thursday, April 27, 2006
बस का किराया
मुझे अक्सर अपने काम से इधर उधर जाना पड़ता है। ये "इधर उधर" 5 से 90 KM के बीच ही होता है। और मेरे यहाँ यातायात का एकमात्र साधन है बस ।
आज घर से निकलने में काफी लेट हो गया था। चालीस मिनट बस स्टॉप पर इंतजार करने के बाद बस मिल ही गयी और बैठने के लिये जगह भी। बस मे मेरे ठीक सामने वाले सीट पर एक साठ - सत्तर साल की बुढी औरत बैठी थी। बेचारी जहाँ जा रही थी (मैं भी वहीं जा रहा था ), वहाँ तक का किराया अठारह रुपये हैं। लेकिन उसके पास सिर्फ नौ रुपये ही थे। लेकिन बस का कंडक्टर उसे आधे भाड़े मे ले जाने को तैयार नही था। वो औरत, कंडक्टर को बाबूजी... बाबूजी.. कहकर गिरगिरा रही थी, लेकिन कंडक्टर के उपर इसका कोई असर नही पड़ा, उसका कहना था "तुमलोगों का तो ये रोज रोज का बहाना है, कभी कहेंगे पैसे नही है तो कभी पैसे भूल गया। तुल लोगो के पास हजार बहाने होते हैं।" वो ठीक ही कह रहा था। जो लोग नियमित रुप से बस से यात्रा करते हैं, वो इसे अच्छी तरह से जानते हैं। कंडक्टर ने गाड़ी रुकवाया और औरत को बीच रास्ते मे ही उतरने कि लि कहने लगा। भला हो उन कालेज छात्रों का, जिनके धमकाने के बाद कंडक्टर ने उस औरत को उतारने की हिम्मत नही दिखाया और बिना किराये के उसे ले जाने को तैयार हो गया।
इसके बाद कंडक्टर किराया लेने मेरे पास लेने आया। मैने पैसे निकालने के लिये जेब मे हाथ डाला। मेरे मुँह से निकल पड़ा .. हे भगवान ! नही, किसी ने मेरा जेब नही काटा था। घर से जल्दीबाजी में निकलने के चक्कर में तो मैं सारा पैसा घर पर ही छोड़ आया। अब क्या करुँ । मैं जानता था कि कंडक्टर विश्वास नही करेगा। मै उसको मौका नही देना चाहता था। मैने खड़ा होकर पुरे बस में एक नजर घुमाया कि कोई परिचित व्यक्ति मुझे मिलजाय। मेरा दुर्भाग्य, कोई नही मिला। इसी बीच कंडक्टर बोल पराः "साहब जल्दी किजीये।" मेरे हावभाव से शायद उसको मेरे हालत का पता चल गया था। इससे पहले कि वो कुछ बोले, मैने अपनी घड़ी उतारी और कहा ये लो इसे रखो, आज किसी कारन मेरे पास पैसे नही है, कल, पडसों या जिसदिन भी अगली बार तुमसे मुलाकात होगी मै तुम्हारा पैसा तुम्हे लौटा दुंगा, तुम मेरा घड़ी मुझे लौटा देना।" मेरे पास कोई और दुसरा रास्ता नही था।
"क्या साहब, ऐसा होते रहता है, छोड़िये ना पैसे फिर कभी दे दिजीयेगा" कहते हुए, उसने मेरे हाथ में घड़ी वापस दे दिया और आगे बढ गया।
आज घर से निकलने में काफी लेट हो गया था। चालीस मिनट बस स्टॉप पर इंतजार करने के बाद बस मिल ही गयी और बैठने के लिये जगह भी। बस मे मेरे ठीक सामने वाले सीट पर एक साठ - सत्तर साल की बुढी औरत बैठी थी। बेचारी जहाँ जा रही थी (मैं भी वहीं जा रहा था ), वहाँ तक का किराया अठारह रुपये हैं। लेकिन उसके पास सिर्फ नौ रुपये ही थे। लेकिन बस का कंडक्टर उसे आधे भाड़े मे ले जाने को तैयार नही था। वो औरत, कंडक्टर को बाबूजी... बाबूजी.. कहकर गिरगिरा रही थी, लेकिन कंडक्टर के उपर इसका कोई असर नही पड़ा, उसका कहना था "तुमलोगों का तो ये रोज रोज का बहाना है, कभी कहेंगे पैसे नही है तो कभी पैसे भूल गया। तुल लोगो के पास हजार बहाने होते हैं।" वो ठीक ही कह रहा था। जो लोग नियमित रुप से बस से यात्रा करते हैं, वो इसे अच्छी तरह से जानते हैं। कंडक्टर ने गाड़ी रुकवाया और औरत को बीच रास्ते मे ही उतरने कि लि कहने लगा। भला हो उन कालेज छात्रों का, जिनके धमकाने के बाद कंडक्टर ने उस औरत को उतारने की हिम्मत नही दिखाया और बिना किराये के उसे ले जाने को तैयार हो गया।
इसके बाद कंडक्टर किराया लेने मेरे पास लेने आया। मैने पैसे निकालने के लिये जेब मे हाथ डाला। मेरे मुँह से निकल पड़ा .. हे भगवान ! नही, किसी ने मेरा जेब नही काटा था। घर से जल्दीबाजी में निकलने के चक्कर में तो मैं सारा पैसा घर पर ही छोड़ आया। अब क्या करुँ । मैं जानता था कि कंडक्टर विश्वास नही करेगा। मै उसको मौका नही देना चाहता था। मैने खड़ा होकर पुरे बस में एक नजर घुमाया कि कोई परिचित व्यक्ति मुझे मिलजाय। मेरा दुर्भाग्य, कोई नही मिला। इसी बीच कंडक्टर बोल पराः "साहब जल्दी किजीये।" मेरे हावभाव से शायद उसको मेरे हालत का पता चल गया था। इससे पहले कि वो कुछ बोले, मैने अपनी घड़ी उतारी और कहा ये लो इसे रखो, आज किसी कारन मेरे पास पैसे नही है, कल, पडसों या जिसदिन भी अगली बार तुमसे मुलाकात होगी मै तुम्हारा पैसा तुम्हे लौटा दुंगा, तुम मेरा घड़ी मुझे लौटा देना।" मेरे पास कोई और दुसरा रास्ता नही था।
"क्या साहब, ऐसा होते रहता है, छोड़िये ना पैसे फिर कभी दे दिजीयेगा" कहते हुए, उसने मेरे हाथ में घड़ी वापस दे दिया और आगे बढ गया।
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